दिल की कसक
दिल की कसक
दिल की कसक लबों का गीत बन गयी,
गुनगुनाओगी या यूँ ही मुझे भरमाओगी?
नज़रें मेरी चाहत का नज़राना बन गयीं,
उसे कबूल करोगी या यूँ ही ठुकराओगी?
तुम्हारे लबों की सुर्खी बसी है मेरे मन में,
उसी से तुमसे मिलन के गीत लिखता हूँ,
तुम्हारी नज़रों में लिखी है इबारत दिल की,
उसे पढ़ कर दिल की तसल्ली करता हूँ.
अपनी ही पलकों में छुपा लो मुझको बस,
नज़रों से अपनी मुझे अब दूर न करो,
कोई नहीं सहारा रब की इस दुनिया में 'शील'
दिल में बसा लो मुझे, अपने से दूर न करो।

