मेरी राहों की पगडंडी
मेरी राहों की पगडंडी
मेरी राहों की पगडण्डी
मुझे दूर देश ले जाती है.
कभी पेडों की झुरमुट में,
कभी हरे खेतों से होकर,
कभी निर्झर झरनों के
साथ -साथ चल कर,
नदिया के आँचल तक पहुँचाती है.
मेरी राहों की पगडण्डी
मुझे दूर देश ले जाती है.
ममता से भरा नदिया का आँचल,
ले लेता अपनी बाहें फैला कर
मुझे अपने आगोश में,
हाथों में पतवार थमा कर
कश्ती ले जाती बहुत दूर
मुझे अपने गाँव से.
अनजानी राहों में मिलते
बहुत से आँधी और तूफ़ान
लहरें भी खूब शोर मचातीं
देती मेरी कश्ती भँवरों में डाल.
लहरों से लड़-झगड़ कर,
भँवरों में भी उलझ-सुलझ कर,
मेरी कश्ती पहुँचती सागर में
लिए जीत का अभिमान.
सात समुन्दर पार करके,वक़्त
पहुँचाता एक अनजाने देश में,
पर यादों में बसी रहती है
पगडण्डी मेरे गाँव की,
जो न जाने कितने लोगों को
उनकी मंज़िल तक पहुँचाती है.
मेरी राहों की पगडण्डी
मुझे दूर देश ले जाती है.
मेरी राहों की पगडण्डी
मुझे मंज़िल तक पहुँचाती है।