चले आओ
चले आओ
निशान पांव के अब भी ढूंढता कोई !
कि तुम लौट आओ !
पीले फूलों की बारात तैयार खड़ी,
हवा छू कर कानों में कुछ बोल रही.!
चुपके से, सब से छुपा कर !
वो बोल सिर्फ तुम्हे बताना चाहता हूँ,
बस चले आओ !
रूठ कर तो जाते न थे कभी !
पलट कर करते हुए ठिठोली
चले गए, मुड़ कर देखे बगैर !
रूठ जाने की वजह तो बताओ !
बस एक बार चले आओ !
वो झूला उदास सा, झुलाता है अब भी,
गाहे बगाहे आवाज़ भी कर देता !
पर चहक खो गयी उसकी,
खिलखिला देगा फिर से,
एक बार झूल जाओ !
नाराज़गी उतार फेंक,
बस चले आओ !