अधूरा चांद..🌹
अधूरा चांद..🌹
उड़ती जुल्फों के बीच.....
बेइंतहा जो सादगी थी
सितारों भरी काली रात में..
वह जगमगाती
चौदहवीं का चाँद थी
उसके नूर का अक्स
इस कदर छा रहा था
रूबरियत उसके ईद के चाँद की..
पलकों से बिखर रहा था.
बेचैन था इस कदर उस..
महताब की झलक पाने के लिए..
आँखें तो खुली थी तैर रहे थे
ख्वाब मिलने के लिए
गुफ्तगू जो हो रही थी तन्हाई में
घने बादलों में थी वो परछाई में
बात निकली है तो फलक तक जाएगी ही
पलकें भीगी हैं तो याद आएगी ही
कुछ जज्बात जो तुझसे है जुड़े
आधे अधूरे ही सही मिलने को दिल के रास्ते तो मुड़े
ऐ अधूरे चाँद तू किसी भी शाख़-ए-गुल पर झुकना
देखना तू मेरा साँझ का सूरज बन तुझ पर मर मिटना.

