पहली पहल ही
पहली पहल ही
ना खबर थी ना एहसास
कि पहली पहल ही तुझसे इतनी मोहब्बत हो जायेगी
ना जाने कब तु इस दिल को इतना भा गया
कि कोई और फिर कभी दिल को भाया ही नहीं
तु कुछ इस कदर नजरों में बसा कि
और कोई इन नज़रों को नजर आया ही नहीं
आंखों का कुछ तु यूँ खास बना
कि रोती हुई आखें भी तुझे देख हंस पडती
सबसे छुपती छुपाती यह नज़र बस
तुझे ही देखती खर यह बात और थी
कि तुझे से ही छिप - छिप कर तुझे ही देखा करती
बातें तेरी ही क्या करती थी
कभी शरमाती कभी चहक उठती
हर पहर तुझे ही देखा करती।

