हाँ,मैं एक दिया हूँ
हाँ,मैं एक दिया हूँ
मैं दिया हूँ
अँधेरों का साथी हूँ
उजाले का साकी हूँ
मुझे अहंकार न हो जाये कि मैं बांटता उजाला हूँ
इसलिये मेरी जमीन पर रहता सदा अँधेरा है।
हाँ, मैं एक दिया हूँ
जलता-बुझता, काबू-बेकाबू!!
मैं दिया हूँ
नव उजास का
नव निर्माण का
नव राग-रंग दौर का
अपनी लौ से नवल नींव को प्रकाशित करता हूँ
पुरातन के आधार को सशक्त करने का दम भरता हूँ
हाँ ,मैं एक दिया हूँ
जुगनू सा जगमग करता,तारों सा टिमटिमाता!
मैं दिया हूँ
शब्द प्रवाह का
भाषा संसार का
हिन्द की चादर हूँ
सतसई की गागर हूँ
सूक्ष्म रूप है मेरा चाहे
जलकर दूर करुँ मैं आहें
"पूर्णिमा" भू-मण्डल में फैला अखण्ड प्रकाश है
सत्य कहूँ तो यही दिये का सारांश है
हाँ,मैं एक दिया हूँ सतत् सक्रिय,कभी न निष्क्रिय!!