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usha yadav

Romance

4  

usha yadav

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खुली किताब

खुली किताब

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काश ! तुम भी एक खुली किताब होती 

पढ़ता रहता तुझे ना दिन का पता 

और ना ही यह रात होती


काश ! तुम भी एक खुली किताब होती

 ना दूर जाने का डर होता और ना

 यह दिल इस कदर फिर कभी रोता


पढ़ जाता मैं उन पन्नों को 

जिसमें तेरे प्यार की बातें 

बेहिसाब होती 

काश ! तुम भी एक खुली किताब होती


 तेरे प्रेम से लिखे शब्दों को मैं बार-बार

 पढ़ता जाता, कुछ वक्त के लिए ही 

सही पर तेरी इस किताब में, 

मैं अपने अरमानों की डोली सजाता

काश ! तुम भी एक खुली किताब होती


 दु:ख से लिखे उन लम्हों को, मैं 

फिर कभी तेरी जिंदगी में ना आने देता 

कुछ पल के लिए ही सही पर तुझे 

मैं अपनी जिंदगी का एक हिस्सा बना लेता 

काश ! तुम भी एक खुली किताब होती।


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