मैं मनाता तो हूँ, पर मानता नहीं वो
मैं मनाता तो हूँ, पर मानता नहीं वो
ये कैसे शिकवे है उनके, और ख़ुशी!
जो संभाल न सकें, वो मुझको ही!!
भूल गए वो इश्क मेरा क्यूँ चुपचाप!
जो देना सका अपना दर्द उसको ही!!
क्यूँ मायूस हैं वो मुझसे हटकर ही ?
जो ख़ामोश निगाहें, लफ्ज हिलते नहीं!!
मैं बहुत परेशां हूँ, उसको मनाने में !
जो मुझसे वो कुछ सच कहते नहीं!!
मैं शहजादा इक दर्द का हूँ !
पर उसको क्यूँ मालूम नहीं !!
कितना सहता हूँ मैं बिछड़कर !
पर वो चुप क्यूँ है जो कहते नहीं!!
कैसे लटकाए वो बैठे मुझसे मुँह!
जैसे प्यार उससे नहीं करता हूँ!!
वो बात मेरी क्यूँ, वो भूल गए हैं ?
जो उसे आज भी अपना कहता हूँ!!
कितना रूठेंगे वो मुझसे हटकर!
ये कोशिश कभी बन्द नहीं होगा मेरा!!
वो न माने इक नज़र का कातिल!
पर सच कहूँ वो ख़लिश होगा मेरा!!!