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Manoj Kumar

Romance Others

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Manoj Kumar

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मैं मनाता तो हूँ, पर मानता नहीं वो

मैं मनाता तो हूँ, पर मानता नहीं वो

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ये कैसे  शिकवे है उनके, और ख़ुशी!

जो संभाल न  सकें, वो मुझको ही!!

भूल गए वो इश्क मेरा क्यूँ चुपचाप!

जो देना सका अपना दर्द उसको ही!!


 क्यूँ मायूस हैं वो मुझसे हटकर  ही ?

 जो ख़ामोश निगाहें, लफ्ज हिलते नहीं!!

 मैं बहुत परेशां हूँ, उसको मनाने  में !

जो मुझसे वो कुछ सच  कहते नहीं!!


मैं शहजादा इक दर्द  का  हूँ !

पर उसको  क्यूँ  मालूम  नहीं !!       

कितना सहता  हूँ  मैं  बिछड़कर !     

पर वो चुप क्यूँ है जो कहते नहीं!!   


कैसे लटकाए वो बैठे मुझसे मुँह!

जैसे प्यार उससे नहीं करता हूँ!!

वो बात मेरी क्यूँ, वो भूल गए हैं ?

जो उसे आज भी अपना कहता हूँ!!


कितना  रूठेंगे  वो  मुझसे  हटकर!

ये कोशिश कभी बन्द नहीं होगा मेरा!!

वो न  माने  इक  नज़र  का  कातिल!

पर सच कहूँ  वो ख़लिश होगा  मेरा!!!



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