वह एक रात थी
वह एक रात थी
वह एक रात थी
जब सो गयी थी दुनिया
अपने अपने कक्षों में छिपा सर
चांद की नादानी
तारों का टिमटिमाना
पुष्प रात रानी के
और क्या था
शायद कुछ भी तो नहीं
श्वान भी सो चुके थे
बस एक तुम थे
एक मैं थी
अकेले अकेले शांत से
तूफान तो कहीं न था
सत्य तो नहीं
तूफान आ चुका था
तभी तो वह रात चांदनी
हम साथ साथ थे
बस प्रेम में खो गये
मेरी इन आंखों को
झील सी गहरी समझ
आपका मन मंदिर गोते लगा रहा था
और मैं भी
सिमट रही थी कुछ उस तरह
अर्पित कर रही आबरू
उस प्रेम यज्ञ में
चमकते सीसे के टुकड़े को हीरा मान
मिटा दिया खुद को
आज ठगी सी
करती मलाल
उफ वह एक रात थी
प्रेम समर्पण से कुछ अलग
एक धोखे की रात।

