सुकून तो रवानगी में था नादान थे हम, ठहराव में बाँधने चले थे। सुकून तो रवानगी में था नादान थे हम, ठहराव में बाँधने चले थे।
इसमें बद्तमीज़ी के नाम पर गुस्ताख़ी नहीं इसमें बद्तमीज़ी के नाम पर गुस्ताख़ी नहीं
उदारता खो गई है कहीं, धोखे का बाज़ार है लगाता, उदारता खो गई है कहीं, धोखे का बाज़ार है लगाता,
रास्ते देखती हैं निगाहें भी, मिलने लेकिन कहां अपने आए हैं। रास्ते देखती हैं निगाहें भी, मिलने लेकिन कहां अपने आए हैं।
वैसे तो ज़िम्मेदारियाँ काफ़ी बड़ी है, क्यों ना अपने हिस्से का वजन उठाये हम वैसे तो ज़िम्मेदारियाँ काफ़ी बड़ी है, क्यों ना अपने हिस्से का वजन उठाये हम
आत्मा में पिरोये नीले धागों में तराशे हुये मोती जीवन के स्वर्णिम क्षणों के आत्मा में पिरोये नीले धागों में तराशे हुये मोती जीवन के स्वर्णिम क्षणों के