रवानगी
रवानगी
कुछ तिनके जुटाने चले थे
हम आशियाना बनाने लगे थे
सुकून तो रवानगी में था
नादान थे हम, ठहराव में बाँधने चले थे।
ज़िन्दगी राहों में सिखाती रही
हम मंज़िलों में सबक ढूंढ रहे थे
सुकून तो रवानगी में था
नादान थे हम, ठहराव में बाँधने चले थे।
कुछ मुश्किलें हैं, कुछ उलझनें हैं
यही तो ज़न्दगी के पैमाने हैं
बिना किसी दर्द के गड़ जाते हैं मुर्दे
हम जीतेजी क्यों ये ज़िद ठाने हैं।
जब तक कुछ धोखे, कुछ फ़रेब हैं
समझना साँसों से भरी ज़िन्दगी की जेब है
हँसी ख़ुशी भी किसी मोड़ पे मिलेंगी
बैठ गया अगर मुसाफ़िर तो ज़िन्दगी कैसे चलेगी।
कुछ तिनके जुटाने चले थे
हम आशियाना बनाने लगे थे
सुकून तो रवानगी में था
नादान थे हम, ठहराव में बाँधने चले थे।
