ज़िन्दगी की उलझन
ज़िन्दगी की उलझन
एक उलझन है उस पल में जिस पल तेरा साथ नहीं
जी भी लेते हैं तुम बिन और जिया जाता भी नहीं
साँसों के संग ज़िन्दगी चलती तो रही
पर पता नहीं कब जीना भुला गयी
तब हमारी आँखें नाम होती थीं हँसते हुये
अब याद नहीं कितना वक़्त गुज़रा है हमको हँसे हुये
एक उलझन है उस पल में जिस पल तेरा साथ नहीं
जी भी लेते हैं तुम बिन और जिया जाता भी नहीं
तुम भी हो, खुशी भी है पर बेफ़िक्री नहीं
आँखों में नमी लाने वाली हंसी अब होंठों पे खिलती नहीं
एक उलझन है उस पल में जिस पल तेरा साथ नहीं
जी भी लेते हैं तुम बिन और जिया जाता भी नहीं।