भरोसा
भरोसा




किसी ने कहा है रस्सी कितनी भी मज़बूत हो,
भरोसा तब तक जब तक उससे सामान बँधा हो,
जिस दिन उसके एक सिरे पे अपनी ज़िन्दगी बँध जाये,
भरोसा डगमगा ही जाये।
किसी दिन फ़ुर्सत में सोचते हैं,
हम खुद को आस्तिक तो कहते हैं,
पर क़ुदरत पे हमारा भरोसा रस्सी से कितना अलग है,
घबरा जाते हैं मुश्किलों में तो अपने भरोसे पे क्यों फ़क़्र है?