अंधेरा
अंधेरा
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आँखें खुलीं तो कुछ अनदेखा
दिखा
रौशनी के पीछे अंधेरा दिखा
घबरा के मैंने आँखें मूंद लीं
खुद को तसल्ली भी दी
सपना ही था जो भी दिखा
जागने पे होगा सवेरा खिला
फ़िर आँखें खुलीं तो कुछ
अनदेखा दिखा
रौशनी के पीछे अंधेरा द
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िखा
आँखें खुलीं तो ये
बात सामने आयी
रात में भी है सुबह
जितनी सच्चाई
कुछ बातें ज़िन्दगी ने
सवेरे में सिखायी
कुछ रातों के लिए बचायी
फ़िर अंधेरों से कैसा गिला
मुस्कुरा के बाहें फैला दी
इस बार जब अंधेरा दिखा