औषधि
औषधि
लेकर स्नेह की औषधि
तुम्हारे दर पर खडी़ हूं
बस ! तुम्हारी हां के इन्तजार में
मैं खोलना चाहती हूं
तुम्हारे मन पर लगे सभी ताले
और घुसना चाहती हूं
मन के हर कोने में
मैं देखना चाहती हूं
हर जख्म छूकर
जानना चाहती हूं
कहां और कितनी
तुमने चोटें खाई हैं
मैं करना चाहती हूं बातें
तुमसे ढेर सारी बातें
और उगलवाना चाहती हूं
तुम्हारे हदय में समाहित
वर्षों से एकत्रित ज्वार
मैं मलना चाहती हूं
ये स्नेह की औषधि
हौले - हौले से
हर जख्मी जगह पर
जानती हूं ! तकलीफ होगी
तुम बहा देना अपना हर दर्द
पलकों के द्वार से
मैं अंजुरी में भर लुंगी
फिर तुम खूब मुस्कराना
बस मुस्कराते जाना
मैं लिखूंगी गजल कोई
दास्तान -ए मुहब्बत की
तुम खूब गुनगुनाना
बस गुनगुनाते जाना .....

