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Dippriya Mishra

Romance

4  

Dippriya Mishra

Romance

प्यार

प्यार

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तुम्हारी याचना सुन

द्रवित हो कर

अगर वादा करूँ

ना बिछड़ने की

तो ये प्रेम नही 

सहानुभूति होगी।

तुम्हारे जख्मों को

जो मैं लगाऊँ मरहम

और सहारा दूँ..... 

तुम्हारे लड़खड़ाते कदमों को

तो भी ये प्रेम नही

हमदर्दी होगी ।

तुम्हारा चेहरा पसंद आना

तुम्हारी बातों का हृदय छूना

प्रेम कहाँ? 

आकर्षण ही तो है।

तुम्हारे पांडित्य पर मुग्ध होना

तुम्हारी अदाओं का कायल होना

ये भी तो प्रेम नही

मानव मन की ये सहज प्रक्रियाएँ हैं।

श्रद्धा -विश्वास भी तो प्रेम नही ,

उपासना -आराधना भी प्रेम नही,

प्रेम... स्रोता है, 

अनायास फूट कर बह निकलता है।

रूप-कुरूप, अच्छा- बुरा,लाभ-हानी सोचना नही जानता ।

प्रेम तेज है.... आँखों में उतर आता है।

प्रेम तडित सा.... हृदय पल में तड़पाता है ।

प्रेम इक उबटन है... तन मन निखर जाता है।

प्रेम वैराग्य सा...... ताज छोड़ जाता है।

प्रेम पावन एहसास कोई... महबूब के कदमों पर टूट कर

 पंखुड़ी सा बिखर जाता है।

प्रेम तो बस प्रेम है... जितना लुटाओ और बढ़ जाता है!


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