हिज्र में उम्मीद
हिज्र में उम्मीद
हमारे ऐसे कर्मचारियों को समर्पित
जो इस समय अपने परिवारों से
दूर रहकर देश की सेवा कर रहे हैं।
हिज्र के आज दिन ऐसे आए हैं,
कैसे मजबूरियों के ये साये हैं।
रास्ते देखती हैं निगाहें भी,
मिलने लेकिन कहां अपने आए हैं।
वो तसल्ली हमें रोज़ देते हैं,
हर दफ़ा हमने धोखे ही खाए है।
उनके दीदार की कोई सूरत हो,
बादल-ए-खौफ़ कुछ ऐसे छाए हैं।
दूरी सहना हुआ अब तो मुश्किल है,
इस तरह फ़र्ज़ अपने निभाए हैं।
ना उम्मीदी के माहौल में हमने,
ख़्वाब उम्मीद के ही दिखाए हैं।।