मिट्टी का गीत
मिट्टी का गीत
आज का गीत (सबकी यही कहानी है) मिट्टी की ये दुनिया इक दिन, मिट्टी में मिल जानी है।
शय कोई हो, या फ़िर इंसा,सबकी यही कहानी है।। एक हमारे कर्मों का बस, लेखा-जोखा रह जाएगा। मिट्टी का ये पुतला इक दिन, मिट्टी में ही बह जाएगा। यहां ज़िन्दगी का़यम अपनी, यहीं मौत भी आनी है। शय कोई हो, या फ़िर इंसा, सबकी यही कहानी है।
भूल गया सब अंजामों को, काम भी ऐसे करता है। रोज़ गुनाहों के सिक्कों से, घड़ा पाप का भरता है। बर्बादी सत्कर्मों की खुद,अपने हाथों ठानी है। शय कोई हो या फ़िर इंसा, सबकी यही कहानी है।
इस मिट्टी से पैदा होकर, मिट्टी का ही नाश किया। इसके दिए खजानों का क्यों, ख़ुद ही सत्यानाश किया। अब देखो घर में बंद होकर,अपनी जान बचानी है। शय कोई हो,या फ़िर इंसा,सबकी यही कहानी है। मिट्टी से जीने के सारे, ज़रिए हमको खूब मिलें। रंग और खुशबू में डूबे, धरती पर ये फ़ूल खिलें।
चोट इसे पहुंचाएंगे तो, चोट हमें भी खानी है। शय कोई हो,या फ़िर इंसा,सबकी यही कहानी है। मिट्टी से ही रचे गए हम, मिट्टी से ही खाते हैं। मिट्टी में ही मिल जाएंगे, फ़िर भी हम इतराते हैं। दुनिया में आया है जो भी, ज़र्रा ज़र्रा फ़ानी है। शय कोई हो, या फ़िर इंसा, सब की यही कहानी है