कहाँ जायें हम
कहाँ जायें हम
आओ अपनी आपबीती बताएं हम
चलो कुछ पुराने किस्से सुनाए हम
बचपन को फिर से जी लें अपने,
फिर से रेत के घरौंदे बनाएँ हम
वैसे तो ज़िम्मेदारियाँ काफ़ी बड़ी है,
क्यों ना अपने हिस्से का वजन उठाये हम
ख़्वाब झूठे जो दिखाते हो तुम मुझे,
कैसे रात-दिन आंसूओं से नहाए हम
जान जाते जो अगर हम हक़ीकत तेरी,
हरगिज़ तुझसे बेवफा दिल ना लगाए हम
अब जी नहीं लगता इस बियाबान में,
क्या सोचकर, किसके लिए घर सजाये हम
ज़िन्दगी ने रुसवा किया रात और दिन हमें,
कब तलक और कितने धोखे खाए हम
कैसी भी रही मुश्किलें और कड़ा वक़्त भी,
"उड़ता" कभी भी हौसलों से न घबराये हम
