देश का अभागा किसान
देश का अभागा किसान


हम सब नर-मादा में बंट गए.
वो बस बना रहा इंसान!
हमने शायद कद्र ना की,
ना किसानी की तरफ रुझान.
वो देश का अभागा किसान!
सूरज से चाहे आग बरसती,
करता नहीं कभी आराम.
बंजर धरती में सोना उगाता,
चाहे तपती रेत हो रेगिस्तान.
वो देश का अभागा किसान!
उसे हालात का ज्ञान बहुत है,
रहा नहीं मौसम से अन्जान.
सुख-दुख छोड़कर बीज डालता,
नहीं सुनता जाकर कहीं अज़ान.
वो देश का अभागा किसान!
दुनियां आगे सरकती चली गयी,
वो छोड़ सका ना अपना ईमान.
हो मज़बूर और क्या करता,
बदहाल आत्महत्या करता किसान.
वो देश का अभागा किसान!
इतने कड़े दंश सहते -झेलते,
कहीं भूल ना बैठे अपनी पहचान.
अन्न से तार्रुफ़ करवाया उसने,
"उड़ता"वो सदा रहेगा महान.
वो देश का अभागा किसान!