ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुहब्बतों के गीत मैं फ़िज़ा में गुनगुनाती हूँ
वफ़ा के साज़ पे सनम तराने मैं सजाती हूँ
यकीन आंख मूंद के तेरी कसम पे कर लिया
दिलासे दे के खुद को अब मैं बेवजह हँसाती हूँ
मेरी तरह बेज़ार हो कभी मुझे पुकार लो
सदायें अपने दिल की मैं लिख के फिर मिटाती हूँ
अजीब शय है इश्क़ भी बेलौस सूफ़ियाना सा
झुलस के आग में भी इश्क़ की सुकून पाती हूँ
गुज़र रहीं हैं शब कई तुम्हारे इंतजार में
हैं ख्वाब सारे लापता मैं नींद को जगाती हूँ
तुम्हारी याद से करी तुम्हारी बातें हर दफ़ा
तुम्हें भुला के रूठ के तुम्हीं को फिर मनाती हूँ
बना के आशियाँ रहूँ तुम्हारे दिल में ही सदा
नहीं हो कोई दरमियाँ यही दुआ मनाती हूँ