गरीब रस
गरीब रस
काव्य के रसों में
शांत, श्रंगार, वीर
हास्य, करुण, रौद्र
अद्भुत और भयावह
रसों से परे
एक नवीन रस
श्रंगार के रागों को चाहता
भक्ति के गीतों का पान करता
कोशिश करता जीवन में हास्य बिखेरने का
परिस्थितियों से दो दो हाथ कर वीरता का रूप रखता
अद्भुत है वह रस
जिसके रंग रंग में भरे हैं अनेकों भयानक अहसास
कभी भूख के, कभी शीत में ठिठुरन के
कभी अरमानों के लुट जाने के
सेठ साहूकारों से ही नहीं
राजकर्मियों से धोखा खाने के भी
क्या परिणति हो सकती है इन सबकी
सिवाय रौद्र के
पर वह अद्भुत रस
रौंद्र में मिला देता अनेकों रसों के रंग
जिंदगी को गुलजार कर रहा
गरीब रस।

