निसंग राही
निसंग राही
बादलों से तेरी में गुफ्तगू करुं
तेरी मेरी टूटी सपने सजाकर
वो जो सुनहरे यादें थे
समेट लूंगी अपनी प्यारकी
भीगी आंचल से और
थरथराती कदम को बांध लूंगी
रिश्तों की जकड़न से ।।
क्या हुआ प्यार की गहराई का
पैमाइश ना कर पाई तो...
पल भर मे खुद से पराई हो गई
रुठना तो मैं भुल गई कबसे
दिवानगी कहीं छुपने लगी
अकेली जो हूं अनजाने राह पर
ख़्वाहिशें भी अब भुलाने लगी
बस् चाँद सितारों से बातें करके
मनको बहलाया करती हूं अब
अकेले अन्धेरी रातों से ।।
न जाने कब-कहां- और कैसे
यूँ हीं मुलाकात हो जाए
इतना तो यकीन है मुझे
की अपनी आंखों को
कभी दोष नहीं दुगीं,
पल भर, पलट कर उसे देखें तो...
पुराने यादों के सहारे अगर
छूटा हुआ प्यार जुड़ जाता है तो ।।

