झूठा दिलासा.....
झूठा दिलासा.....
तसल्ली तो तुम्ही ने दिया था
मेरे सारे गम पोंछ लोगे
तुम्हारे प्यार की भीगी रूमाल से ।
जोड़ दोगे तुम्हारे हाथों से
मेरे टूटे पिंजरे को
ढूंढ के ला दोगे खोये हुए
मेरे मन के पंछी को ।।
लेकिन वादा करके
तुम गये तो गये
किससे डर गए
समय को या समाज को
या फिर भूल गये तुम
मेरे आंसू कि धारा को
और मेरे पर के
बेपनाह एतबार को ।।
आंसू से भीगी आँखें को या
तुम्हारी शक के सवाली दिल को किसको यकीन करूं........
समय को या
रिश्ते के मोम घर को
एक ही फुतकार में जो
पिघल जाएगी
एक ही घड़ी के आगमन से
जो टूट पड़ेगी कटी पतंग की तरह
सुबह के ओस भीगी आंगन में ।।
तसल्ली का हर लम्हा
आज कबर बनी हुई....
वादों कि पाव चिह्न मिट गई
समाज कि तीखी निगाह से ।
बस जो चुल्लू भर सपना मेरी
आखिरी साँस बनकर पड़ी है...
सहारा ले के बढ़ती मधु मालती जैसे
बिखर जाति है
रात की तूफान के बाद ।।
