प्रकृति का रोष
प्रकृति का रोष
सभ्यता की आर मैं
कितने ही अत्याचार हुए हैं,
प्रकृति के ऊपर
सहे लिए सब कुछ
बस और नहीं।
आज प्रकृति भी ले रही प्रतिशोद
सृष्टि की अनमोल रचना,
जो संभाल नहीं पाए।
हिंसा से भरी आँखों से
सर्वनाश ले आये।
संभल जाना है अब
मान देना है,
प्रकृति के सौन्दर्य को
सुरक्षा का आश्वास देना है।
