बेटी
बेटी
मुझे गर्व है
हाँ मैं एक बेटी हूँ।
मुझे गर्व है मैं किसी की
घर की मर्यादा हूँ ,
मुझे गर्व है मैं एक बेटी हूँ
कभी किसी की परछाईं बन के,
तो कभी किसी का एक मात्र आश्रय हूँ
हाँ मैं बेटी हूँ।
किसी की घर की मर्यादा हूँ
ज़िन्दगी भर दुखों को समेटे हूँ
एक पहेली हूँ
हाँ मैं एक बेटी हूँ ।
बाबा की दुलारी माँ की आँखों
का तारा हूँ
हाँ मैं एक बेटी हूँ ,
बाबुल के घर को अंधेरा करके
पराई हुई
दूसरे का घर उजाला किया,
अपना समझ के मैं वही सहारा हूँ
हाँ मैं एक बेटी हूँ।
जनम से लेकर अर्थी तक
अपना माना सबको
फिर भी क्यों सबकी पराई हूँ
हाँ मैं एक बेटी हूँ
मुझे गर्व है
मैं किसी के घर की मर्यादा हूँ ।