काश !
काश !
काश, मैं ऐसा होता
काश, मैं वैसा होता
क्या क्या न होता गर,
पास सब कुछ होता
क्या चीज़ है ये काश भी,
सपनों को ज़िंदा रखती है।
सपनों में ज़िंदा रखती है,
सपनों से ज़िंदा रखती है।
इस काश के चलते ही तो,
इच्छाएं, ज़िंदा रहती हैं।
इच्छाएं, जो मरती नहीं।
इच्छाएं, जो मिटती नहीं।
हम सब इच्छाओं के मारे
न इच्छा से मुक्ति होती है
न इच्छा की मृत्यु होती है
न इच्छा से मृत्यु होती है।