ऐ बचपन, तू वापस क्यूं नहीं आता
ऐ बचपन, तू वापस क्यूं नहीं आता
बरसात में नहाना, मिट्टी में खेलना,
शाम दोस्तों के साथ कबड्डी खेलना,
गुल्ली डंडा, और क्रिकेट की बॉल,
रास्तों पर दिखाना टेढ़ी मेढ़ी चाल।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
देर से आने पर मां का झूठा गुस्सा,
फिर मेरा बताना झूठा मुठा किस्सा,
फिर मां का रोटी गरम गरम बनाना,
कभी डांट कर खुद खाना खिलाना।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
गलती कर देने पर वो पापा का डर,
परीक्षा में करना हमारे लिए फिकर,
चोट लगने पर पहले गुस्सा दिखाना,
फिर गोद में बिठा प्यार से समझाना।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
गर्मी की छुट्टी में नानी के घर जाना,
फ्रिज से बरफ निकाल कर खाना,
नानी के गुस्सा होने पर उन्हें मनाना,
नाना का हम पर झूठ मूठ चिल्लाना।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
भाइयों के संग घर की छत पर सोना,
रात में भूतों की कहानी सुन कर रोना,
कहानियां सुना के उनका मुझे डराना,
गुदगुदी लगाकर उनका मुझे हंसाना।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
स्कूल पहुंच अपने दोस्तों को ढूंढना,
साथ साथ बैठें, ऐसा उनको बोलना,
लंचटाइम में सबका साथ में खाना,
मौका मिलते ही क्लास बंक कर जाना,
होमवर्क ना करने का नया नया बहाना,
फिर दूसरे की कॉपी से लिख कर लाना।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता
न कोई चिंता थी, न थी किसी से जंग
दिल में अरमानों की खिलती थी उमंग
आंखों में चमकते थे इन्द्रधनुष के रंग
ज़िन्दगी थी अपनी जैसे उड़ती पतंग।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूं नहीं आता
कहां गईं वो पतंगे, कहां गई वो रातें,
अब तो बस यादें ही हैं दोस्तों की बातें,
नौकरी में छूटा वो भाई बहन का साथ,
फोन पर ही होती है अपनी मां से बात,
बहुत याद आती है अब पापा की डांट,
कुछ पुरानी यादें और यादों का साथ।
ऐ बचपन, तू वापस क्यूँ नहीं आता।
