बांसुरी
बांसुरी
जीवन के सब कुछ लेकर
जो तुम भूल गए थे
वो है ये बांसुरी ........
पुरानी -कदाकार -अनचाह आज
होंठों से होंठ की जड़ को
दिल से दिल को
जितनी दूर आवाज आती है
तुम्हारी मीठी साँस की कोमल आमंत्रण
प्रतिध्वनित हो के बिखर जाती है
हमारी सारे आंगन ।।
किसी की पाव का आहट
चुपके चुपके दरवाजा खोल के घुस जाती
एकांत, अंधेरे कमरे में ।
और कभी धड़कन बन के
डोल जाती मेरी पथरीली दिल में ।।
महका के गाँव की गोरी की
तन, मन, भीगी बदन
रात की नींद, दिन का चैन चुरा के
कशमकश में डाल रहा है
रात के आँसू लेकिन ...
सुबह की फूल बन के
दौड़ती आंखों के कोने में
परिपूर्णता कि मुसकान मुसकुराती
नजदीक जब ये बांसुरी होती ।।।

