इश्क़
इश्क़
हुआ इश्क क्यों उनसे
हम ये पता ही नहीं,
वो क्यों करती नफरतें
हमसे हुई खता ही नहीं।
यूं बेवजह कोई रूठना
भी तो नहीं होता है,
खता जो कि ही नहीं
तो उन्हें मनाना क्या।
इश्क नफरत की नहीं
मोहब्बत की सौगात हैं,
इश्क चाहत से भरी
दिल में जज़्बात है।
इश्क में कोई बंदिशें
मजबूरियां न होती है,
इश्क में हमसफ़र से
दूरियां न होती है।