प्यार
प्यार
प्यार के बारे में, क्या कहा जा सकता है,
ये वो नशा है जो पीते ही उतरता है।
जब तक रख्खो उसे होंठों से दूर,
बना रहता है उसका अनोखा सुरूर।
जैसे ही आए वो आपके पास,
को जाता है उसका मस्तान एहसास।
बन जाता है वो एक खुदगर्ज रिश्ता,
जो दूसरे के दुःख नहीं समझता।
पैरों की बेड़ी बन वो रोक लगाएं,
आजादी है सबको प्यारी ये समझ न पाए।
थोड़ी देर भले ही वो झुक के साथ चले,
पर जब टूट जाए सब्र तो फिर आग जले।
भस्म हो जाते हैं इसमें सारे लोग,
तभी कहलाता है यह प्रेम रोग!

