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Modern Meera

Romance

3  

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कुछ अनमने सलाम

कुछ अनमने सलाम

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हाय हम मुहब्बत की गली को दूर से

कुछ अनमने सलाम कहते हैं 


पर दिल की हर एक तार उफ़ कम्बख्त, 

उस बेवफा को आज भी, दिलजान कहते हैं 


तन्हाईयो की रात लम्बी और नुकीले हिज़्र के लम्हे 

चुभते याद और रिसते ज़ख्म, पैग़ाम कहते हैं 


न कुछ कहना, न कुछ सुनना, न मिलने की गुंजाइश 

मेरे धड़कनो में कैसे फिर भला, जनाब रहते हैं ? 


सुना करते थे लेकिन था यकीं की सच नहीं होते 

अब नायाब वो किस्से, खुद बयां करते हैं 


मुहब्बत है बड़ी मुश्किल, पर हो जाये तो क्या करिये 

कि अब आशिक की यादो में सुबह से शाम करते हैं 


मुकर जाये वो करके जो कभी इज़हार तो उम्मीद 

बस एक दीदार की और कुछ नहीं, जीते न मरते हैं 


मिली थी जो निगाहें उनसे, दौड़ी बिजलियाँ एक दिन 

अभी तक उस चिंगारी से ही शम्मा हम जलाते हैं 


इतना भी क्या गुरूर , की हुज़ूर हमीं से ये रुस्वाई 

जिनकी आरज़ू ले हम, उम्र अपनी तमाम करते हैं।


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