कवि
कवि


एक कवि
जब कभी कविता लिखता है
तो वह कविता नहीं
कल्पनाओं को उन
भावों रूपी शब्दों को
मोती समान माला में
गुथता है….
जो बैठे, अकेले एक कोने में
विचारों की विलीनता से
सृजित होते हैं।
एक कवि
जब कभी कविता लिखता है
तो वह कविता नहीं
कल्पनाओं को उन
भावों रूपी शब्दों को
मोती समान माला में
गुथता है….
जो बैठे, अकेले एक कोने में
विचारों की विलीनता से
सृजित होते हैं।