हे मानव
हे मानव
हे मानव,तू कर्म कर
इस भवसागर को पार कर
यहाँ वेदना और अपार पीड़ा के सिवा कुछ नहीं
अपने मतलब के सिवा और कोई रिश्ता नहीं।
भव सागर रूपी सागर की भी सीमा है
माया का जोर है और उसकी महिमा भी है
करोडो आत्माए जीवित हैं
कहने के लिए उनकी अपनी आपवीत है।
"कोई ना कोई" पीड़ा से सब गुजर रहे हैं
दुःख का डूंगर बड़ी पीड़ा दे रहा है
इतने कष्ट सहने के बाद भी माया नहीं छूट रही
जिन्दा रहने के सिवा और कोई अटूट श्रद्धा नहीं रही।
तूने जीना यहां मरना यहां
प्यार कर सब से उसके लिए है सारा जहां
ना बांध पाप की गठरियाँ सब छोड़छाड़ जाना यहाँ से
ना जिद कर बस, जीना सिख ले सत्कर्म से।
हे सदपुरुष।
क्या है तेरा भविष्य?
तेरा अल्प है आयुष्य, कर ले सपने साकार
उठा अपना धनुष्य,कर ले पापों का संहार!
रात में वो ही जागता, जो है संयमी
शांति से वो ही जिंदगी बसर कर सकते जो है उद्यमी
बाकी तो जूठे,मक्कार और अधर्मियों की नहीं कोई कमी
आप देख सकते है उनकी आँखों में नहीं है अमी।
आप दैवी स्वप्न में राच सकते है
अपने आपको प्रभु के चरण में सौंप सकते है
दैवीलोक की कल्पना करकर अपने आपको गर्वान्वित महसूस कर सकते है
अपने आपको सौभग्यशाली समजकर जीवन व्यतीत कर सकते है।
मानवजीवन सब को प्राप्त नहीं होता
पिछले जन्मों का फल ही आपको प्राप्ति कराता
यदि आप अपने जिंदगी संतुष्ट है तो कोई आपको दुखी नहीं कर सकता
पवित्र धरती ही सदैव आपको, स्वर्ग की अनुभूति कराता।
हे मनुष्य, अपना जीवन सार्थक कर
अपने आपको प्रभु का साधक बनकर
मानवता की सेवा में अपनी जात को समर्पित करकर
आसान कर अपना योगदान अदना इंसान समझकर।