सर्दियां
सर्दियां
सुबह कोहरे की धुंध से धुंधली सड़कें और आसमान,
धूप के न नहीं दिखते आसार हैं,
दफ्तर कैसे जाएं गाड़ी चलाकर,
दिखता नहीं सामने खड़ा इंसान हैं,
बेहाल पैरों और हाथों की उंगलियां,
और काम पर जाना भी जरूरी है,
सुबह कोहरे में अखबार लाते वो,
न जाने कैसे हिम्मत कर निकलते बाहर है,
सोच सोच कर घबराता जी मेरा,
बस ड्राइवर कैसे चलाते ट्रेन और बस है,
जहां घर से बाहर दूर से कोई नजर नहीं आता,
वहां घने जंगलों से निकालनी होती बसें और ट्रेन हैं,
सर्दी में आनंद लेते बच्चे,
छुपे रहते रजाई और कम्बल में लेते आनंद सर्दी के,
गर्म गर्म हाथों में खाना लाती मां,
वो खाते मस्त ठंडी में,
मन करता पकौड़े और चाय का,
फरमान हो जाता जारी चुटकियों में,
मां सुबह शाम ठंड में फरमाइश पूरी करती है,
और बच्चे मस्त रजाई में दुबके रहते हैं,
ठंड में बुरा हाल उन बस्तियों में रहने वालों का,
ठंड और कोहरे की धुंध में सिमटे रहते कोनों में,
जगह जगह अलाव जलाकर करते गुजारा है,
सचमुच उनकी हिम्मत है कैसे रहते वो इतनी ठंड में,
हम घर में रहकर ठंड से कांपते हैं,
उन्हें देखो जो सुबह जल्दी उठकर काम पर जाते हैं,
चाहे कैसा हो मौसम अपनी ड्यूटी निभाते हैं,
सचमुच उनकी हिम्मत को नमन है,
जो सीमा पर रहते हर वक्त तैनात हैं।
