हरा... प्रकृति की सुंदरता को छीनता इंसान भोगेगा इसका परिणाम..
हरा... प्रकृति की सुंदरता को छीनता इंसान भोगेगा इसका परिणाम..
प्रकृति....
आह! क्या दृश्य है बड़ा अद्भुत,
नीले आसमान में उमड़-घुमड़ बादल,
और पक्षियों की चहक करती आवाज,
और हर ओर मंद मंद हवाएं,
उस पर वृक्षों की हिलती पत्तियों का शोर,
मनमोहक दृश्य है प्रकृति का,
देख तन और मन प्रफुल्लित हो जाता है,
पर अब सब जगह छाई धुंध और प्रदूषण,
आसमां भी रहता धूमिल सा,
वृक्ष मानों नजर ही नहीं आते,
आते नजर बड़े बड़े आलीशान महल फैक्ट्री,
और नजर आते बीमारी से ग्रस्त इंसान,
वो सुंदरता मानो प्रकृति की छीन ली इंसान ने,
और दिया उपहार में प्रदूषण ही प्रदूषण,
वृक्षविहीन धरा और गंदगी का ढ़ेर,
पक्षियों से विहीन आसमां और बड़े बड़े महल,
और दिया उपहार बाढ़ तूफान और आपदा,
सचमुच प्रकृति की सुंदरता में क्या चार चांद लगाए,
प्रकृति को ही नीरसता की ओर धकेल दिया,
अब भी वक्त है इंसान संभल जा इंसान,
वरना जो बोया तूने धरा पर वहीं काटेगा,
किया धरा को वृक्षविहीन तो छाया कहां पाएगा,
किया जल को प्रदूषित तो क्या पीएगा ?
सोच जरा वृक्ष नहीं तो औषधि कहां से लाएगा ?
और हरियाली नहीं तो सांस कैसे ले पाएगा ?