धूल
धूल
धूल की धूल उड़ी धरा से, उधेड़बुन में अधेड़ पड़े हैं,
धूल फांककर, धूल झाड़ते, धूल-धूसरित लोग अड़े हैं,
दीन-दशा से व्याकुल धाकड़, धूल की रस्सी लिए खड़े हैं,
धौंकनी पर धूल डाल दो ! यही कह रहे जो भी बड़े हैं ।
धूल में फूल उगे भी बहुत, मगर उसकी भी मर्यादा है,
रोब-दाब में नहीं किसी के, धूल का जीवन ही सादा है,
आँखों में न धूल डालिए, पैरो में जिसकी अनुराधा है,
सबको धूल चटा दूँगी ! धूल की राह में धूल ही बाधा है ।
बबूल के घर रौनक बढ़ी, आंधियाँ चली है गुलाबों पर,
नागफनियाँ मेहंदी रचाती, ग्रहण लगा आफताबो
ं पर,
सवाल नए हैं, दौर नया है, बन्दिश है सही जवाबों पर,
आँखों पर चश्मा रंगीन और धूल जमी है किताबों पर।
धड़कनों पर धुंध छा गई, गरिमा भी जली जलावन सी,
उसी राख से पगड़ी बांधे, नए शासक मनभावन सी,
अनहोनी का मृगा दौड़ा, कातर नजर पड़ी सावन सी,
किंच बन गई धूल से मिलकर, धंस गई धरती पावन सी।
रेणु, रज, गर्द, रेत, मिट्टी, धूल, धूसर, कण नाम मेरे,
पतित पावनी का बालू, अहिल्या मेरी और राम मेरे,
मीरा, कबीर, तुलसी, राधा, वृंदावन के घनश्याम मेरे,
ऐ धरा ! तेरी है धूल की जैसे-स्वर्ग लोक सुख धाम मेरे।