हर किरदार उनका निराला है....।
हर किरदार उनका निराला है....।
कष्ट सहना वो जानती है,अपनों को साथ लाना वो जानती है,बच्चों की खुशियां भी वो जानती है,
अपने सपनों को भुलाकर,औरों की खुशियों में खुश रहना वो जानती है,क्योंकि वो स्त्री हैं,
जिसे शुरुआत से उस सांचे में ढाला जाता है,कि भूल अपने सपने, वो मां खुशी खुशी रखती परिवार का ध्यान,
करती सबकी परवाह वो,पर खुद पर ध्यान देना भूल जाती है, और सुन सबके तानों को खुश रहना जानती है,
सचमुच धन्य है उनका स्वभाव, मां भी वो, बहन भी वो हर फर्ज अपना बखूबी निभाती है,
चेहरे पर तनिक भी उसके सिकन नहीं, क्योंकि वो स्त्री हैं फौलाद की चट्टान, जो दुश्मनों से भिड़ना भी जानती है,
और वक्त आने पर दुष्टों का सहांर करना भी जानती है, बेशक कोमल स्वभाव हर नारी का होता है,
पर परिवार पर आए संकट तो महाकाली बन जाती है, तभी तो हर नारी में मां दुर्गा की छवियां नजर आती है,
सिर्फ एक दिन उनका सम्मान करने से,सिर्फ एक दिन उनको अच्छा महसूस कराने से,हमारा दायित्व पूरा नहीं होता,
क्योंकि जिस प्रकार मां की ड्यूटी कभी खत्म नहीं होती,उसी प्रकार प्रत्येक नारी का सम्मान प्रतिदिन करना,
उनको वहीं सम्मान देना चाहिए,क्योंकि सिर्फ एक दिन,उनको खास महसूस कराना काफी नहीं होता,
क्योंकि आंगन सूना सा लगता है उनके बिना,और हाथ जब सिर को छूएं मानो जन्नत मिल जाती है,क्या कहूं मैं...
बिना मां की डांट सुनें,खाना भी बेस्वाद लगता है,बहू बन जब वो घर में आती है तो,
पैरों की छम-छम करती पायल से घर में रौनक छा जाती है,और हाथों की खनकाती चूड़ियों से अंगना महक जाता है,
सचमुच मां बिना घर सिर्फ मकान है,उनके आने से हर कोना मानो चहक जाता है,घर को सजाने संवारनें के साथ साथ,
वहां की हर दीवारों में मानो जान डाल देती है,तभी तो वो मकान को घर बना देती है।