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Shibangi Das

Inspirational

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Shibangi Das

Inspirational

डर

डर

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डर किस बात का है तुम्हें

डर इस समाज से,

उनकी अनगिनत बेतुकी बातों से है

या है तुम्हें अपने आप को खोने का डर?

है तुम्हें दूसरों के इच्छानुसार स्वाधीन होने का

या खुद की संतुष्टि को खोने का डर?


कुछ पूछा तुमने?

क्या?

क्यूँ पूछ रही हूं ये सब?

क्यूंकि पूछना जरूरी भी तो है

क्यूंकि डर के भी

किसी सिक्के की ही तरह दो पहलू होते हैं,

डरना बुरा भी होता है

और कभी कभी फायदेमंद भी

क्यूंकि खुद को खोने का डर होना, 

समाज के डर के होने से

कहीं बेहतर है

क्यूंकि मुक्त आकाश में स्वच्छंद पक्षी का जीवन

पिंजरे के भीतर सुख सुविधाओं के साथ

जीने वाले पक्षी के जीवन से

ज्यादा आरामदायक है


थोड़ा सोचना कभी तुम

और अगर सही लगे तो

डरने से मत डरना तुम

खुद के अस्तित्व को खोने के डर से

समाज से जो डरते हो तुम,

उस डर को मिटाना तुम

जो सिकुड़ कर डर की बेड़ियों से

बैठे हो तुम,

कभी बेफिक्र हो बांहों को फैला

खुली हवाओं का स्पर्श महसूस करना तुम


कभी ग़र वक़्त मिले

तो सोचना तुम,

जो मैंने पूछे तुमसे सवाल

कभी खुद से फिर पूछ लेना तुम 


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