मैं, तुम और फ़ासले
मैं, तुम और फ़ासले
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ये जो हैं फ़ासले
तुम्हारे और मेरे बीच
चलो ना, इन्हें मिटा देते हैं
कुछ वक़्त और बेवक्त की बातें कर
अपनी गलतफहमियों को भुलाकर
चलो ना, इन्हें सुलझा ही देते हैं
ये ख़यालात ही है हम दोनों के
जो क़ैद है हमारे अंदर
चलो ना, इन्हें आजाद करते हैं
बाँध रखा है क्यूँ अपने दिल को
आवारों की तरह इसे भी घूमने दो ना
है ज़रूरत अगर किसी चीज की
तो कहते क्यूँ नहीं
बिन कहे समझ लूँ हर बात
माफ़ करना, ये क़ाबिलियत मुझमे नहीं
प्यार समझ आता है
पर तुम्हारी खामोशी बहुत कम
क्या काफ़ी नहीं इतना
हमारे फासलों को करने को कम
चलो ना, कुछ वक़्त और बेवक्त की बातें करते हैं
हैं जो फ़ासले हमारे बीच
चलो इन्हें मिटा ही देते हैं
