माँ
माँ
आज तक सिर्फ़ माँ के बारे में
कविताएँ पढ़ कर
या कई कहानियाँ सुनकर
मेरे मन में
थोड़ी हमदर्दी जागा करती है।
ऐसा नहीं मैं उनकी
फ़िक्र नहीं करती
पर उनके दिन भर के मेहनत
का अंदाजा होकर भी
मैंने उन्हें अनदेखा भी
कई बार किया है।
माँ नहीं होती घर पर तो
जैसे सब तहस नहस हो जाता है
माँ है तो सुकून है
ये तभी समझ आता है।
हर वक्त बस चिल्लाया करती है
तो गुस्सा बड़ा आता है
पर उसकी आवाज भी न सुनूँ
तो दिन मेरा मायूसी में डूब जाता है।
उसकी मुझसे हमेशा शिकायत रहती है
कि मैं उसका दर्द नहीं समझती
ऐसा नहीं है
बस समझकर ना समझ हूं बनी रहती।
मेरे लफ़्ज़ों से उसके मरहम भर पाऊँ
बस यही कोशिश रहती है
अपने आलस को भगाकर
उसकी अपेक्षायें पूरी कर पाऊँ
बस यही कोशिश रहती है।