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Sonal Gour

Inspirational

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Sonal Gour

Inspirational

ज़िंदगी को खुलकर जिया जाए

ज़िंदगी को खुलकर जिया जाए

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सवालों के जवाब और जवाबों के सच होने का ख़्वाब,

कभी देखा है ?

दिन में रौशन और रात में बुझा हुआ कोई चिराग,

कभी मन में सुलगा है ?

राहें अनजान और मंजिल लापता,

बेपरवाह से इस सफर का मुसाफिर, 

कभी बनकर देखा है ?


मौजूद होकर भी नामौजूद,

सिरहाने होकर भी आंखों से दूर,

ऐसे फरिश्तों से कभी मुलाक़ात की है ?

रिश्तों की डोर से बंधे होकर भी,

दिल के धागों को तोड़कर,

खुदगर्ज़ी की कश्ती में सवार अपनों से

कभी आंखें मिलाकर देखी है ?


ज़ाहिर है जो और नज़रों के सामने भी,

दिल की ख़ूबसूरती और मन की सादगी को 

कभी गले लगाकर देखा है ?

मालूम होकर भी मालूम नहीं,

फ़लक तक चलकर भी ज़मीन से दूर नहीं,

ऐसे सपनों की उड़ान कभी भारी है ?


क्या देखा क्या नहीं,

क्या सुना क्या नहीं,

क्या सच निकला क्या झूठ,

क्या साथ रहा और क्या गया छूट,

इन बातों की उलझन में,

सुलझकर भी उलझ गए,

या उलझकर भी सुलझ गए,

ये जानो या ना जानो,

बस इतनी सी बात है,


ज़िंदगी बहुत छोटी है

सीमाओं में रेहकर जीने के लिए,

उन्हीं घिसी पिटी कहानियों के किरदार निभाने के लिए,

चलो, क्यों न खुद की एक कहानी खुद ही लिखी जाए,

बेबाक सा बनकर अपने हिस्से की खुशियां समेटी जाए,

क्यों ना सब भूलाकर ज़िंदगी को खुलकर जिया जाए ?


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