सूर्य सा चमकना
सूर्य सा चमकना
अर्थ को अनर्थ से,
शब्द को निःशब्द से,
चुप्पी को फिर हार से,
जीत को विराम से,
वो जोड़ेंगे हर बात को हर बात के टकराव से।
सिर झुका अगर जो है,
नमन नहीं वो शर्म है,
मुस्कान पर भी देखो कोई दाग लगा है,
उदासी चीखती है फिर किस्मत खराब है,
अच्छाई तुम में है कहां दिखावे की ये पोशाक है,
झूठ के कफ़न से अपने सिर को ज़रा ढक लो तुम,
अस्तित्व पर तुम्हारे ग्रहण जो छा रहा है,
इन तीखे शब्द बाणों से आघात करेंगे, तुम्हें आहत करेंगे,
तुम टूटना नहीं मगर, वरना वो अपनी जीत की हुंकार भरेंगे,
धैर्य की संजीवनी को साथ लिए चलना,
अडिग, अटल, अभेद्य सा विश्वास लिए बढ़ना,
बाण के समक्ष तुम त्रिशूल बन उभरना,
कटु वचनों के अकाल में बरसात बन बरसना,
तुम बादलों को चीरकर फिर सूर्य सा चमकना,
तुम सूर्य सा चमकना...!
