शायद
शायद
शायद मैं ज़िंदगी में अपना और
ज़िंदगी मुझमें खुद का अक्स ढूंढ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी के नाटक का सूत्रधार और
ज़िंदगी मेरी कहानी में खुद का किरदार ढूंढ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी में अपनी मंज़िल और
ज़िंदगी मुझमें खुद की राह ढूंढ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी में सुबह का शोर और
ज़िंदगी मुझमें रात का सुकून ढूंढ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी में अपना मकान और
ज़िंदगी मुझमें एक छत ढूंढ़ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी में अपना खुदा और
ज़िंदगी मुझमें खुद का इंसा ढूंढ रही है,
शायद मैं ज़िंदगी में अपना और
ज़िंदगी मुझमें खुद का अक्स ढूंढ रही है...!!