वीरों की गाथा.....
वीरों की गाथा.....
इस धरती को नमन मैं करता हूँ, जिस पर गंगा बहती है।
कल-कल बहती धारा ये, अपने वीरों की गाथा कहती है।
गाथा कहती, राम की, परशुराम की, और श्री विष्णु की,
कथा सुनाती, भीष्म की, अर्जुन की, और स्वयं जिष्णु की।
लक्ष्मण का शौर्य निष्ठा है, प्रह्लाद का शौर्य भक्ति है,
दान, कर्ण का शौर्य है, और धर्म युधिष्ठिर की शक्ति है।
इस धरती को नमन मैं करता हूँ, जिस पर गंगा बहती है।।
कल-कल बहती धारा ये, अपने वीरों की गाथा कहती है।।
सम्राट पृथ्वी का ये शौर्य सुनाती, लड़े थे वो जी-जान से,
गौरी की छाती को भेदा था, अपने शब्द-भेदी बाण से।
प्रताप अड़े-लड़े थे रण में ऐसे, जैसे दावानल धधकती है,
वीर शिवाजी के पराक्रम, की सानी दिए नही थकती है।
इस धरती को नमन मैं करता हूँ, जिस पर गंगा बहती है।।
कल-कल बहती धारा ये, अपने वीरों की गाथा कहती है।।
अहिल्या बाई के हलकारे ने, जब मुग़लो के होश उड़ाए थे,
रानी झाँसी के हुँकार ने, अंग्रेज़ों के जब छक्के छुड़ाए थे।
जीजा माता के स्वाभिमान से, स्वराज की अग्नि जलती है,
देवी दुर्गा की ये धरती है, जो हर दानव का मर्दन करती है।
इस धरती को नमन मैं करता हूँ, जिस पर गंगा बहती है।।
कल-कल बहती धारा ये, अपने वीरों की गाथा कहती है।।
भगत, आज़ाद, सुभाष सरीखे, कईयों के हैं बलिदान यहाँ,
गाँधी, नेहरू, पटेल सरीखे, हैं भारत के अभिमान यहाँ।
मिट्टी के कण-कण में, इन वीरो की गाथा रचती-बसती है,
आर्यावर्त के आँचल में जन्में, वीरों को पावन करती है।
इस धरती को नमन मैं करता हूँ, जिस पर गंगा बहती है।।
कल-कल बहती धारा ये, अपने वीरों की गाथा कहती है।।