प्रेम-पंकज
प्रेम-पंकज
होता अगर मैं बच्चन तो,
तेरी आँखों पर लिखता मधुशाला,
तेरे बदन को कहता मैं साकी,
होंठों को कहता मय का प्याला।
होता अगर मैं ग़ालिब तो,
लिखता तुझपर एक प्रेम-ग़ज़ल,
तुम्हें नाम देता मधुबाला।
और कहता तुझको प्रेम-कँवल,
होता अगर मैं ख़य्याम तो,
लिखता तुझपर एक प्रेम-रुबाई,
लिखता तुझको खुद खुदा,
और ढूँढता तुझमें सारी खुदाई।
होता अगर मैं साहिर तो,
लिखता तुझपे प्रेम-तल्खियाँ,
तेरे आँचल को आसमाँ लिखता,
कहता तुझको हुस्न की दुनिया।
पर मैं तो हूँ पागल हेमू,
लिखूँगा तुझपर प्रेम-पंकज,
कहूँगा आँखों को नीरज,
और चेहरे को चाँद और सूरज।