STORYMIRROR

Pankaj Prabhat

Children Stories Drama Children

4  

Pankaj Prabhat

Children Stories Drama Children

बचपन

बचपन

1 min
8

बचपन की यादों में, ये मन, सोया सा लगता है,

घर के आँगन का, वो आसमान, खोया सा लगता है,


वो सोंधी सी मिट्टी, जिसे छुप कर, खाया करते थे,

उस मिट्टी का स्वाद, अभी भी, ताज़ा सा लगता है


दूध रोटी खाते वक़्त, जब कटोरे में, चँदा होता था,

वो सुंदर सा मेरा चँदा, अब, अधूरा सा लगता है।


वो स्कूटर का दो चक्कर, जो, वर्ल्ड टूर सा होता था,

वो वर्ल्ड टूर, अब तक, सच्चा सा लगता है।


उंगली पकड़ कर मेले में, जब, घूमा करते थे,

वो गुब्बारे के लिए रूठना, अब भी, हक़ जैसा लगता है।



जाने कब क्यों कैसे, पंकज प्रभात हो गए,

पर मन तो अभी भी वही, हेमू जैसा लगता है।


Rate this content
Log in