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Pankaj Prabhat

Romance

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Pankaj Prabhat

Romance

क्या कहिये!!!!!

क्या कहिये!!!!!

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 बोलती, बतियाती, आँखें हैं तुम्हारी, 

             उसमें काजल लगाना, क्या कहिये!

इशारों से लगाती हो, आग फज़ा में,

             फिर खुद, दामन बचाना, क्या कहिये!


गुलाबी होंठों की रंगत तो देखो,

             नज़ाकत में छुपी शरारत तो देखो,

जो थिरकती हैं, तो नशा सा घोलें,

              फिर उनपर, हँसी दबाना, क्या कहिये!


ज़ुल्फों में छुप कर, घटाएँ खेलती हैं,

             जो बिखरें, मस्ती में, पुरवा चलती है,

उनसे है ढँका, ये चाँद सा रौशन चेहरा,

             जवाँ दिन में, रात का मुस्काना, क्या कहिये!


मोरनी सी चाल, कमरिया लचके जैसे डाली,

             यूँ लगे, जैसे है, कोई नदिया मुड़ने वाली,

हैं खुशबू, फ़ज़ाओ में, बिखरी और भी,

             तुमपर ही पंकज, हुआ दीवाना, क्या कहिये!


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