बेटियाँ जाने क्यों?
बेटियाँ जाने क्यों?
बेटीयाँ जानें क्यों? इतनी जल्दी, जवान हो जाती हैंं,
रहती तो हैं दिल में, पर घर की, मेहमान हो जाती हैंं।
जो बाँहों झूलती, कँधों पर खेलती, आँगन में दौड़ती हैं,
अचानक, किसी और के घर की आसमान हो जाती हैं।
रहती तो हैं दिल में, पर घर की, मेहमान हो जाती हैंं…..
माँ की परछाई, पापा की परी, भाई की चुड़ैल होती हैं,
मौसी की जान, मामा की प्राण, आँगन की बेल होती हैं।
मौसी, बुआ से एक दिन, चाची और मामी बन जाती हैं,
मायके की दीवार बेटी, ससुराल में पूरा मकान हो जाती हैं।
रहती तो हैं दिल में, पर घर की, मेहमान हो जाती हैंं…..
एक रात, सात फेरे, सात वचन, सब कुछ बदल देता है,
अपनी जाई, हुई पराई, एक चुटकी सिंदूर जब डलता है।
घर की सरस्वती, ससुराल की, लक्ष्मी, पार्वती हो जाती हैं,
ये कलियाँ, जाने कब गुल, गुलशन से गुलिस्तान हो जाती हैंं।
रहती तो हैं दिल में, पर घर की, मेहमान हो जाती हैंं…..
