वह जी रहा
वह जी रहा
वह जी रहा है
एक निवाले के लिए
एक चीथड़े के लिए
ग़रीबी से जूझते
उम्मीद के सागर में
बहते हुए वेग की तरह
वह जी रहा
समाज के कानून सहते हुए
रूढ़ियों से जकड़े
हर नए दिन की नई आस में
हर रात ये सोचते
कल वाह भी जी सकेगा
नई आशा की सुबह
के इंतजार में
वह जी रहा है।
